एतकाफ करना खास इबादत है।इसमें इंसान अल्लाह के बेहद क़रीब हो जाता है-मौलाना मुकर्रम हुसैन
रिपोर्ट अमन मलिक
रामपुर मनिहारान-हज़रत मौलाना मुकर्रम हुसैन ने कहा कि रमजान उल मुबारक के आखरी अशरे में एतकाफ करना खास इबादत है।इसमें इंसान अल्लाह के बेहद क़रीब हो जाता है।
मदरसा दारुल उलूम शब्बीरिया हलगोया के प्रबंधक हज़रत मौलाना मुकर्रम हुसैन ने रमजान के आखरी अशरे के बारे में बयान करते हुए बताया कि रमजान का आखरी अशरा यानि रमजान के आखरी दस दिन बहुत खास हैं।इसी में शबे कद्र आती है जो हजार रातों से अफजल है।आखरी अशरे में एतकाफ किया जाता है जिसमें एतकाफ करने वाला सारी दुनिया को भुलाकर सिर्फ अल्लाह की इबादत में मशगूल रहता है यह एक खास इबादत है। मौलाना ने कहा कि एतकाफ सुन्नतें मोअककदा अल किफाया है यानि मस्जिद के इलाके के लोग मस्जिद में रहकर एतकाफ करें लेकिन अगर ऐसा ना हो तो कोई एक आदमी भी एतकाफ कर ले तो सबकी तरफ से एतकाफ अदा हो जाता है। लेकिन अगर कोई एतकाफ नहीं करता तो वो लोग सुन्नत छोडने वाले है। उन्होंने कहा कि औरते घर में एतकाफ कर सकती हैं।मौलाना मुकर्रम हुसैन ने कहा कि मसनून एतकाफ टूट जाये तो उसकी कजा जरूरी है चाहे वो जानबूझ कर तोडा गया हो या मजबूरन। अगर दिन में टूटा है तो रोजा रख कर सुबह सादिक से सूरज ढलने तक मस्जिद में रहे और अगर रात में टूटा है तो एक रात और अगला दिन मस्जिद में गुजारे और कजा के साथ रोजा भी जरूरी है। यदि कोई ऐसी बीमारी हो जाये जिसका ईलाज मस्जिद में मुमकिन न हो तो एतकाफ तोडा जा सकता है। किसी अजीज की मौत होने पर घर वालो की जान माल और आबरू को खतरा हो जाये तो एतकाफ तोडा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इनके अलावा भी कुछ और नियम कायदे है जिनके बारे में उलेमा से जानकारी कर लेनी चाहिए। हम सभी को चाहिए कि दिन रात अल्लाह की इबादत करके उसकी खुशनुदी हासिल करें और अल्लाह से अपनी मगफिरत करा लें।
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