शैक्षणिक वर्ष 2024-2025 के लिए जमीअत उलमा-ए-हिंद और एम.एच.ए. मदनी चैरिटेबल ट्रस्ट देवबंद ने एक करोड़ साठ लाख रुपये छात्रवृत्ति वितरित की
मैरिट के आधार पर 915 छात्र चुने गए, इस बार भी 46 ग़ैर-मुस्लिम छात्र शामिल
दुनिया में वही क़ौम विकास करती है जिसकी युवा पीढ़ी प्रशिक्षित एवं शिक्षित होः- मौलाना अरशद मदनी
रिपोर्ट समीर चौधरी
नई दिल्ली-अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने मुख्य कार्यालय में शैक्षणिक वर्ष 2024-2025 के लिए मैरिट के आधार पर चुने गए 915 छात्रों के लिए एक करोड़ साठ लाख रुपये छात्रवृत्ति जारी कर दी है। उल्लेखनीय है कि इन छात्रों में हमेशा की तरह इस बार भी 46 गैर-मुस्लिम छात्र भी शामिल हैं। छात्रवृत्ति राशि सीधे छात्रों के एकाउंट में डाली जा रही है।
स्पष्ट हो कि आर्थिक रूप से कमज़ोर परन्तु बुद्धिमान छात्रों को उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा की प्राप्ति में सहायता करने के उद्देश्य से जमीअत उलमा-ए-हिंद ने 2012 से हर वर्ष छात्रवृत्ति देने की घोष्णा की थी, इसके लिए मौलाना हुसैन अहमद मदनी चेरेटबल ट्रस्ट देवबंद और जमीअत उलमा-ए-हिंद अरशद मदनी पब्लिक ट्रस्ट की ओर से एक शिक्षा सहायता फंड स्थापित किया गया और शिक्षाविदों पर आधारित एक टीम गठित की गई जो हर वर्ष मैरिट के आधार पर छात्रों का चयन करती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वर्ष बड़ी संख्या में ग़ैर-मुस्लिम छात्रों ने छात्रवृत्ति के लिए आवेदन भेजे थे, उनमें से मैरिट के आधार पर 46 छात्रों को छात्रवृत्ति के लिए चुना गया। इसके पीछे केवल यही उद्देश्य है कि गरीबी और आर्थिक परेशानी के कारण बुद्धिमान बच्चे किसी बाधा के बिना अपनी शिक्षा जारी रख सकें। मौलाना मदनी ने कहा कि शिक्षा ऐसा एकमात्र प्रभावी माध्यम है जिससे कोई भी क़ौम ना केवल अपनी सुरक्षा कर सकती है बल्कि अपने खिलाफ होने वाले प्रोपैगंडों का उचित जवाब भी दे सकती है। हमें यह बात अच्छी तरह याद रखनी चाहिए कि दुनिया में वही क़ौमें विकास करती हैं जिनकी युवा पीढ़ी प्रशिक्षित एवं शिक्षित होती है। उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे अब पूरे जोश के साथ व्यावसायिक शिक्षा ही नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा में भी आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन यह दुखद सत्य है कि मुसलमान समग्र रूप से आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार हैं, शिक्षा व्यय में बहुत अधिक वृद्धि हो चुकी है इसलिए ऐसे बहुत से बुद्धिमान और प्रतिभाशाली छात्र बीच में ही शिक्षा छोड़ देते हैं जिनके अभिभावक शिक्षा का ख़र्च नहीं उठा सकतेे, दूसरी ओर एक कड़वा तथ्य यह है कि सांप्रदायिक मानसिकता मुस्लिम बच्चों पर शिक्षा में आगे बढ़ने का रास्ता रोक रही है। मौलाना आज़ाद फाउंडेशन समेत मुसलमानों के शिक्षा विकास के लिए चलाई गई अन्य स्कीमों को बंद किया जा चुका है, इन रुकावटों के बावजूद अगर हमारे बच्चों में शिक्षा का अनुपात लगातार बढ़ रहा है तो यह एक सकारात्मक संकेत है। उन्होंने एक बार फिर कहा कि यह आरोप लगाया जाता है कि हम लड़कियों की शिक्षा के खिलाफ हैं जो सरासर ग़लत और निराधार है। हम लड़कियों की शिक्षा के नहीं उस मिश्रित शिक्षा के खिलाफ हैं जिससे सामाजिक बुराइयों के फैलने का खतरा हो, दुनिया का कोई धर्म सामाजिक बुराइयों को फैलाने की अनुमति नहीं देता। उन्होंने कहा कि देश की स्व्तंत्रता के बाद हम एक क़ैम के रूप में इतिहास के बहुत गंभीर मोड़ पर आ खड़े हुए हैं, हमें एक ओर विभिन्न मुद्दों में उलझाया जा रहा है तो दूसरी ओर हम पर आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक विकास के सास्ते बंद किए जा रहे हैं। इस साज़िश को अगर हमें विफल करना है और गौरव प्राप्त करना है तो हमें अपने बच्चे और बच्चियों की शिक्षण संस्थाएं स्वयं स्थापित करनी होंगी। उन्होंने कहा कि क़ौमों का इतिहास गवाह है कि हर दौर में विकास की चाभी शिक्षा रही है। इसलिए हम एक बार फिर क़ौम के परोपकारी एवं धनवान लोगों से यह निवेदन करेंगे कि वो आगे बढ़कर बच्चों और बच्चियों के लिए अलग अलग शिक्षण संस्थाएं स्थापित करें जहां वो किसी डर और भय के बिना अपनी धार्मिक पहचान और इस्लामी प्रशिक्षण के साथ शिक्षा प्राप्त कर सकें। यह कोई मुश्किल काम नहीं है, इसके लिए हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है। मौलाना मदनी ने कहा कि इस प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को एक आदर्श संस्था बनाने का प्रयास होना चाहिए ताकि उनमें ग़ैर-मुस्लिम अभिभावक भी अपने बच्चों और बच्चियों को पढ़ाने पर विवश हो जाएं, इससे ना केवल आपसी मेलजोल और भाईचारे में वृद्धि होगा बल्कि वह गलत फहमियां भी समाप्त हो जाएंगी, जो मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक तत्वों की ओर से योजनाबद्ध तरीक़े से लगातार फैलाई जा रही हैं।मौलाना मदनी ने कहा कि हमारे बच्चों में बुद्धिमत्ता और क्षमता की कमी नहीं है। हाल ही में आने वाली कुछ सर्वे रिपोर्टों में आया है कि मुस्लिम बच्चों में ना केवल शिक्षा अनुपात में वृद्धि हुई है बल्कि शिक्षा प्राप्ति में रुचि पहले से कहीं अधिक देखने में आरही है। इसलिए हमें मायूस होने की आवश्यकता नहीं बल्कि अगर हम उन्हें सक्रिय करें और प्रोत्साहन दें तो रास्ते में आने वाली हर बाधा को दूर करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हमें यह याद रखना होगा कि घर बैठे कोई इंक़लाब नहीं आता बल्कि इसके लिए प्रयास करने के साथ-साथ बलिदान भी देना पड़ता है।मौलाना मदनी ने अंत में कहा कि एक ओर जहां धार्मिक अतिवाद को हवा देने और लोगों के दिमाग में नफ़रत का ज़हर भरने का भयावह सिलसिला पूरे ज़ोर-शोर से जारी है, वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को शैक्षणिक और राजनीतिक रूप से कमज़ोर कर देने की घातक योजना भी शुरू हो चुकी है। मौलाना मदनी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में देश की आर्थिक स्थिति अत्याधिक कमज़ोर हुई है और बेरोज़गारी में खतरनाक हद तक वृद्धि हो चुकी है परन्तु इसके बावजूद सत्ता में बैठे लोग देश के विकास का ढिंडोरा पीट रहे हैं और इस अभियान में पक्षपाती मीडीया उनका खुल कर साथ दे रहा है। उन्होंने कहा कि अर्थ व्यवस्था और बेरोज़गारी की समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही धार्मिक अतिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। मौलाना मदनी ने आगे कहा कि धार्मिक नफ़रत और सांप्रदायिक आधार पर लोगों को विभाजित करने का यह खेल देश को तबाह कर देगा, धर्म का नशा पिलाकर बहुत दिनों तक मूल समस्याओं को छिपाया नहीं जा सकता, रोटी, कपड़ा और मकान मानव की मूल आवश्यकताएं हैं इसलिए नफ़रत की राजनीति को बढ़ावा देने की जगह अगर रोज़गार के संसाधन नहीं पैदा किए गए और पढ़े-लिखे युवाओं को नौकरियां नहीं दी गईं तो वो दिन दूर नहीं कि जब देश की युवा पीढ़ी विरोध में सड़कों पर नज़र आएगी।
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