यात्री ने समय के करघे पर संवेदनाओं की सुई से कहानियां बुनी हैं- वीरेन्द्र आज़म
रिपोर्ट अमान उल्ला खान
सहारनपुर-कथाकार से रा यात्री के साहित्य में परिलक्षित होता आम आदमी का अंर्तद्वन्द’ विषय पर सहारनपुर के साहित्यकार डॉ. वीरेन्द्र आज़म की वार्ता नजीबाबाद आकाशवाणी से सोमवार की देर शाम प्रसारित की गयी। देश के प्रख्यात कथाकार से. रा. यात्री का जन्म सहारनपुर के जडौदा पाण्डा में 10 जुलाई 1932 को अपने फूफा के घर हुआ था। उन्होंने 300 से अधिक कहानियां, 40 कहानी संग्रह, 32 उपन्यास सहित विपुल साहित्य रचा। एक दर्जन से अधिक विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर शोध कार्य हो चुके है और अभी भी हो रहे हैं।
डॉ. वीरेन्द्र आजम ने आकाशवाणी द्वारा प्रसारित वार्ता में कहा कि से रा यात्री ने समय के करघे पर अंर्तद्वन्द की सुई और संवेदनाओं के धागे लेकर कहानियांे को बडे़ सुंदर शिल्प के साथ बुना है। उनकी कहानियों में आम आदमी का अंर्तद्वन्द वैचारिक स्तर पर भी परिलक्षित होता है और व्यवहारिक स्तर पर भी। उनकी कहानियों में आम आदमी आर्थिक हालात से उपजे अंर्तद्वन्द में भी फंसा है और सामाजिक परिस्थितियों से उपजे द्वंद में भी। यात्री जी की अनेक कहानियों में उनके द्वारा नजदीक से देखा गया आम आदमी का संघर्ष और जिजीविषा भी है और स्वयं भोगा गया यर्थाथ भी। यही वजह है कि उनकी अधिकांश कहानियां आम आदमी के द्वंद और अंर्तद्वन्द को परिलक्षित करते हुए आगे बढ़ती हैं। उनकी ऐसी कहानियों में ‘छिपी ईंट का दर्द’, ‘मोहभंग’, ‘माध्यम’, ‘दिशाहारा’, ‘छछूंदर’, ‘मुर्दाफरोश’, ‘हिंसक’, ‘अंतर’, ‘निर्वासन’ व ‘दरारों के बीच’ आदि के नाम लिए जा सकते हैं।उक्त कहानियों को पढ़कर कहा जा सकता है कि से रा यात्री की कहानियां जहां आम आदमी के द्वंद और अंर्तद्वन्द को अलग-अलग संदर्भो में अपने पूरे अहवाल के साथ व्यक्त करती हैं वहीं मूल्य चेतना, समर्थ और सशक्त दृष्टि के साथ पाठक को आकर्षित करती हैं तथा भाषा, भाव, कथ्य, संवाद और संवेदनाओं की कसौटी पर शत प्रतिशत खरी उतरती हैं।
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