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भटक रही युवा पीढ़ी को पढ़ाएं नैतिकता का पाठ- दिलीप कुमार गुप्ता

 भटक रही युवा पीढ़ी को पढ़ाएं नैतिकता का पाठ- दिलीप कुमार गुप्ता

शोषण, नशाखोरी, भ्रष्टाचार की घटनाएं आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं- दिलीप कुमार गुप्ता

रिपोर्ट अमान उल्ला खान

सहारनपुर-हर व्यक्ति का समाज, परिवार, दोस्तों व अपने काम के प्रति कुछ न कुछ दायित्व होता है। इसे निभाने के लिए हमें गंभीर भी होना चाहिए। उक्त विचार रेलवे रोड़ स्तिथ एक समारोह में दानिश सिद्दीकी जिलामंत्री उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ नें दिलीप गुप्ता जिला सूचना अधिकारी से मुलाक़ात की।

इस दौरान  दिलीप कुमार गुप्ता जिला सूचना अधिकारी नें आज के युग की युवा पीढ़ी के दायित्व व माता -पिता के संस्कारो पर विचार करते हुए कहा की  युवा पीढ़ी को अपने दायित्व को निभाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। हमारा प्रमुख दायित्व है। हमें किसी न किसी रूप में इसे पूरा भी करना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद, के लिए युवा भी आगे आए. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमें हमेशा आगे आना चाहिए। युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाना, उसे अच्छे-बुरे की समझ करवाकर भी हम अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। आज की युवा आधुनिकता के रंग में अपने संस्कारों, नैतिकता और बड़ो का आदर करना भूल रही है। हमारा दायित्व है कि युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाएं, ताकि आने वाला कल अच्छा हो। जहां पर बच्चा गलत करता है उसे टोकना चाहिए। संसार में मानव परमात्मा की प्रमुख व खूबसूरत कलाकृति है तथा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मानव होने के नाते हम कुछ ऐसी मानवीय संवेदनाओं, आवश्यकताओं, अपेक्षाओं व धारणाओं के सूत्र में बंधे हुए हैं, जिसका कोई कानूनी, शास्त्रीय, धार्मिक या जातीय प्रतिबंध न होते हुए भी हमारे निजी, सामाजिक, पारिवारिक और राष्ट्रीय जीवन से सीधा सरोकार है। इनका निर्वाह हमारे नैतिक दायित्व के अंर्तगत प्रमुख है। किसी लाभ, स्वार्थ या प्रतिफल की इच्छा के बिना दूसरों की मंगल कामना, लोक कल्याण, सबके हित में योगदान करना भी हमारे दायित्व में आता है। गुरु का कार्य केवल पुस्तकों के ज्ञान की मंजिल तक सीमित नहीं है, अपितु उसका पथ प्रदर्शक बन व्यावहारिकता में उसे मंजिल तक पंहुचाना भी है। आज की युवा पीढ़ी को भावी व चरित्रवान बनाना तथा पौराणिक ज्ञान से दनुप्रमाणित होकर आधुनिक तकनीक और विज्ञान में भी किसी से पीछे न रहने की पद्धति का अनोखा संगम बच्चों के भविष्य को एक स्वर्णिम राह की ओर ले जाएगा। अगर सभी अच्छे बन जाएंगे तो निश्चित रूप से समस्त समाज भी अच्छा हो जाएगा। शिक्षक के रूप में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिष्यों को सभ्य एवं शिक्षित बनाना है न केवल साक्षर। शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों को भी भरें और संस्कारों को लेकर उनके साथ रोजाना बातचीत की जाए। रोजाना अगर संस्कार की बात होगी तो बच्चे स्वयं ही नैतिक मूल्य व संस्कारों के प्रति सजग रहेंगे जिससे हमारा दायित्व भी पूरा हो जाएगा। अंधेरे की ओर बढ़ती इस पीढ़ी को संवेदनशील बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को यह दायित्व निभाना होगा कि वह नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाए। यही हम सबके जीवन का दायित्व होना चाहिए। समाज में रह रहे सभी लोगों को समय-समय पर दायित्वों के प्रति प्रेरित करते रहना चाहिए। कुछ प्राणी ऐसे हो सकते हैं जिनको दायित्वों से कुछ लेना-देना नहीं है। अपनी जिम्मेदारियों सही ढंग से निभाना ही दायित्व है। एक अध्यापक होने के नाते मैं यह कहना चाह रही हूं कि आज के शिष्यों में वह सहनशीलता नहीं रही है जो प्राचीन काल में हुआ करती थी। उनके अंदर के अवगुणों को निकाल अच्छे गुणों को भरा जाए। शिष्यों को नैतिकता, शिष्टाचार, अच्छे विचार, आदर, विनम्रता व सहनशीलता की शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाया जाए ताकि वह समझ सकें कि बड़ों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए और हमारे समाजिक सांसारिक व राष्टीय दायित्व क्या है।

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