परचम संस्था द्वारा आयोजित शेरी महफिल में शायर और साहित्य प्रेमी ने लिया भाग
रिपोर्ट अमान उल्ला खान
सहारनपर -परचम संस्था के तत्वाधान में पक्का बाग पर डॉक्टर कुद सिया अंजुम के निवास स्थान पर एक शेरी महफिल का आयोजन किया गया जिसमें सहारनपुर के शायर और साहित्य प्रेमी ने बड़ी संख्या में भाग लिया ।
सऊदी अरब से आए मुख्य अतिथि सेहरा में शाम पुस्तक के लेखक सुहेल इकबाल ने कहा कि इस तरह के महफिलें भाषा की हिफाज़त करती हैं ।इस अवसर पर अध्यक्षता कर रहे मशहूर शायर दानिश कमाल ने कहा कि ऊर्दू ओर हिंदी दोनों बहने हैं और ये गंगा जमुनी तहजीब की अला मत हैं।इस अवसर पर चुनिंदा शेर जो बहुत पसंद किए गये।सुहेल इकबाल ,मैंने तो मशविरा ही मांगा था ,तुम तो ताकीद पर उतर आए।,हर एक दारीचे हर एक दर में धूल उड़ने लगी ,तुम्हारे जाते ही इस घर में धूल उड़ने लगी आ,सिफ शमसी,कुदरत ही समझती है दीवानों का दुख आसिफ ,दुनिया में सब इन पर पत्थर ही उठाते हैं। डॉक्टर कुद सिया अंजुम ,उसने आंखों से कुछ कहा शायद,मेरे दिल ने भी कुछ सुना शायद ,वादा कर लेना फिर मुकर जाना ,ये भी फ़ैशन सा हो गया शायद ,नुसरत परवीन ,उसके लहजे में ये जो खुशबू है ,क्या उसकी ज़बान उर्दू है। तलत सरोहा यह कौन है जो याद आ रहा है बार-बार मुझे ,ये कौन छेड़ता रहता है बार-बार मुझे।सूफिया जैदी ,कहूं मैं किस से दिल के मेरे हैं क्या जज्बात ,मुझे है शिकवा कोई हम जुबान नहीं मिलता। खुर्रम सुल्तान ,यहां हाकिम सजा के मुस्तहिक़ हैं ,यहां बच्चे खिलौने बेचते हैं।,फैयाज नदीम दिल की गहराई में उतर जाना ,मुद्दतों बाद ये हुनर जाना ।,खुशबू की तरह रहते हैं कुछ लोग दिलों में ,महसूस तो होते हैं दिखाई नहीं देते। दानिश कमाल मेरी आँखों ने र ट लिया चेहरा हो गया हि फज अब तेरा चेहरा ,उसकी खामोशी हो गई बेकार ,हम ने पल भर में पढ़ लिया चेहरा ,कार्य क्रम में फरजाना शेख, ख़लीक़ अहमद, बुशरा, साजदा अ समा साबिर अली खान आदि उपस्थित रहे।
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