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संतान की दीर्घायु के लिए माताएं कल रखेगी निर्जला व्रत

 संतान की दीर्घायु के लिए माताएं कल रखेगी निर्जला व्रत

अहोई अष्टमी:संतान की खुशहाली और सौभाग्य प्राप्ति का है ये पर्व

मां पार्वती के रूप को ही अहोई माता माना जाता है

रिपोर्ट-अमित मोनू यादव

सहारनपुर-सनातन धर्म में व्रतों का अपना एक अलग महत्व होता है। प्राचीन परंपराएं और मान्यताओं के आधार पर व्रत रखे जाते है। कुछ व्रत लोग अपने आराध्य की पूजा को समर्पित करते है तो कोई व्रत पति की दीर्घायु और सुख समृद्धि के लिए किए जाते है।

ऐसा ही एक व्रत माताएं अपनी संतान की खुशहाली, सौभाग्य और दीर्घायु के लिए करती है। अहोई व्रत कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। ये व्रत अहोई अष्टमी के व्रत के नाम से प्रसिद्ध है।मान्यता है कि जो माताएं मां पार्वती के स्वरूप मां अहोई का व्रत रखती उनकी संतानों को सुख समृद्धि ,खुशहाली और सौभाग्य प्राप्त होता है। निस्संतान माताएं भी अगर ये व्रत को पूर्ण करती है तो उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है।गुरुवार (कल) अहोई अष्टमी हैसाध्य योग और गुरु पुष्य नक्षत्र संयोग में अहोई माता की पूजा अर्चना करने से संतान के जीवन में चल रही समस्याएं समाप्त होंगी।

अहोई अष्टमी पर पूजन और शुभ मुहूर्त का समय 

हिंदू पंचांग के अष्टमी तिथि का आरंभ 24 अक्टूबर को रात 1 बजकर 18 मिनट पर होगा। अष्टमी तिथि का समापन 25 अक्टूबर को रात 1 बजकर 58 मिनट पर होगा। अहोई अष्टमी पर पूजन का शुभ मुहूर्त ब्रहस्पतिवार को शाम 5 बजकर 42 मिनट से शाम 6 बजकर 59 मिनट तक रहेगा।

अहोई माता कौन हैं ?

अहोई माता को मां पार्वती का रूप माना जाता है। इन्हें संतानों की रक्षा और उनकी लंबी उम्र प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। इनकी पूजा करने से महिलाओं की कुंडली में ऐसे योग बन जाते हैं,जिससे बंध्या योग, गर्भपात से मुक्ति, संतान की असमय मृत्यु होना एवं दुष्ट संतान योग आदि सभी कुयोग समाप्त हो जाते हैं। धार्मिक कथा के अनुसार, अहोई माता का चित्रण एक पौराणिक घटना के प्रतीक रूप में देखा जाता है।

अहोई अष्टमी पर तारों को देखकर क्यों खोला जाता है व्रत

अहोई अष्टमी का व्रत शाम को तारों के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,अहोई अष्टमी के दिन अनगिनत तारों के दर्शन और पूजन से कुल में अनगिनत संतान होती है। इस व्रत में माताएं पूजा-अर्चना के दौरान आकाश में जैसे तारे चमकते हैं, वैसे ही घर में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। अहोई अष्टमी व्रत में तारों को अर्घ्य देना बेहद जरूरी होता है। कहा जाता है कि इसके बिना व्रत का संपूर्ण फल नहीं मिलता है।

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