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जरुरत क्या तुम्हारे रुप को श्रृंगार करने की....

जरुरत क्या तुम्हारे रुप को श्रृंगार करने की....

मेला गुघाल के स्थानीय कवि सम्मेलन में कवियों ने काव्य की विभिन्न विधाओं का इंद्रधनुष उतारा

रिपोर्ट- अमान उल्ला खान

सहारनपुर- मेला गुघाल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में जनमंच सभागार में आयोजित स्थानीय कवि सम्मेलन में कवियों ने काव्य की विभिन्न विधाओं गीत, कविता, मुक्तक, हास्य, माहिया, ग़ज़ल, लोकगीत का सतरंगी इंद्रधनुष उतार दिया। कवियों ने तिरंगे और भारत मां के गौरव का गुणगान करने के अलावा जल संरक्षण व सावन-भादों की बारिश और प्रेम व श्रृंगार की बौछारों से श्रोताओं को सराबोर करते हुए खूब वाह-वाही लूटी। 

शहर के दिवंगत गीतकार व कवि राजेन्द्र राजन, इन्दिरा गौड़, कृष्ण शलभ, सुरेश सपन व विभा मिश्रा की स्मृति को समर्पित कवि सम्मेलन का उद्घाटन महापौर डॉ. अजय कुमार, मेला चेयरमैन मनोज प्रजापति, वाइस चेयरमैन फहाद सलीम व कु.ज्योति अग्रवाल तथा समाजसेवी यशपाल भाटिया, कुलदीप धमीजा, योगेश दहिया, उद्यमी बृजेंद्र त्रिपाठी, शिव गौड, पंडित शैलेन्द्र तिवारी और उपस्थित पार्षदों ने मां शारदा की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। साहित्यकारों की ओर गीतकार व समारोह अध्यक्ष बुद्धिनाथ मिश्र ने महापौर डॉ. अजय कुमार को शॉल ओढ़ाकर उनका अभिनंदन किया। जबकि महापौर डॉ. अजय कुमार, मेला चेयरमैन मनोज प्रजापति व सह संयोजक प्रशांत राजन तथा पार्षद अहमद मलिक, स्वराज, नितिन जाटव, सुखबीर सिंह, सोपिन पाल, व पार्षद प्रतिनिधि सईद सिद्दकी ने सभी कवियों का शॉल ओढ़ाकर व माल्यार्पण कर अभिनंदन किया और स्मृति चिह्न प्रदान किए। सभी पार्षदों व अतिथियों को भी पटका पहनाकर स्वागत किया गया। कवि विनोद भृंग की सरस्वती वंदना-‘ज्ञान की देवी हमें दो, ज्ञान का वरदान’ से काव्य पाठ का श्रीगणेश हुआ। पी एन मधुकर ने, ‘तिरंगा भारत की शान है,वीरों की जान है/इसके लिए न कोई, हिन्दू-मुसलमान है/तिरंगे की जय हो, जय हो तिरंगे की।’’सुनाकर माहौल को राष्ट्रीय भावों से भर दिया। इसी कड़ी में बिजनौर से आये नरेंद्रजीत अनाम ने पढ़ा-‘जिसका मस्तक स्वयं हिमालय शोभायमान करें/आओ हम उस भारत माँ का गौरवगान करें।’विनोद भृंग ने पढ़ा-‘जो हमारे शूरवीर हैं, बार-बार उन्हें नमन’। नरेन्द्र मस्ताना ने पढ़ा-‘गर सलीके से यहां रस्में निभायी जायेंगी/देखना मिट्टी से भी चंदन की खुशबु आयेगी।’ सुनाकर प्रशंसा बटोरी।

बिजनौर से आये लोक गीतकार कर्मवीर सिंह ने जल संरक्षण पर लोकगीत पढ़कर वाहवाही लूटी-‘अरे तुम जल न करो बेकार, ये जीवन सूना पड़ जागा/सूना पड़ जागा, ये सारा खेल बिगड़ जागा’। डॉ.वीरेन्द्र आज़म ने कोलकाता कांड, बांग्लादेश के माहौल और सद्भाव के अलावा पेरिस से गोल्ड मेडल जीतकर लाये खिलाड़ियों के सम्मान में माहिया पढे़। उनके इस माहिया पर सभागार तालियों से गूंज उठा-‘मैं आजाद परिन्दा हूं/पिंजरे में मत रखो/मैं भी तो जिन्दा हूँ’। जबकि आर पी सारस्वत ने माहिया पढ़ा-पूछो परवाने से/क्या सुख मिलता है/जल-जल मरजाने से’। सुधीर परवाज़ की ग़ज़ले भी सराही गयी। उनका शेर देखिए-‘ कब तलक निर्धन रहूं, धनवान बनकर देख लूं/राह से सच्चाई की अनजान बनकर देख लूं’। धामपुर से आये हुड़दंग नगीनवी की-‘मंत्री जी के घर पहुंचते ही, पत्नी ने उन्हें आडे़ हाथों लिया..’आदि हास्य रचनाएं सुनाकर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया।कवि सम्मेलन तब शिखर पर पहंुच गया जब अध्यक्षता कर रहे देश के जाने माने गीतकार डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र,मेरठ की प्रतिभा त्रिपाठी और मुजफ्फरनगर से पधारी सुशीला शर्मा की प्रेम और श्रृंगार की रचनाओं ने श्रोताओं को प्रेम गंगा में स्नान करा दिया। डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र के श्रृंगार गीत की पंक्तियां देखिए-‘जरुरत क्या तुम्हारे रुप को श्रंृगार करने की/किसी हिरणी ने अपनी आंख में काज़ल लगाया क्या’। उनका एक और मुक्तक देखिए-‘दर्द की मीठी थाप पर मरता,आंसुओं के मिलाप पर मरता/ऐसा लगता है मैं मरुंगा नहीं, मरना होता तो आप पर मरता’। मेरठ से आयी प्रतिभा त्रिपाठी का अंदाज़ देखिए-‘है अभी कच्चा न पक्का, अधपका सा  इश्क है/आंच धीमी गंध सौंधी, इक धुआं सा इश्क है’। सुशीला शर्मा ने कुछ यूं बयान किया-‘तुम छलिया पांवों में मेरे पायल बांध गए/सूने नयनों में चुपके से काजल आंज गए’। इसके अलावा जया गुप्ता ने भी काव्य पाठ किया।कार्यक्रम में डॉ. हरिओम गुप्ता, डैनी सक्सेना, करुणा प्रकाश, शरद भार्गव, अखिलेश भार्गव, पवन वर्मा, विपुल माहेश्वरी अनुरागी, अलका शर्मा, ममता प्रभाकर सहित शहर के सुधी श्रोता आधी रात तक कविताओं का आनंद लेते रहे। संचालन सहसंयोजक प्रशांत राजन ने किया।

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