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मजालिस मे वारिदे करबला व तौहिद पर रोशनी डाली गयी

  मजालिस मे वारिदे करबला व तौहिद पर रोशनी डाली गयी

रिपोर्ट-अमान उल्ला खान

सहारनपुर -मौहर्रम की  दूसरी तारीख को नगर के विभिन्न इमामबाड़ो मे हुई मजालिस मे मुस्लिम धार्मिक विद्वानो ने वारिदे करबला (करबला मे प्रवेश) व तौहिद (परवर दिगारे आलम का कोई शरीक नही है वह अकेला ही कुदरत रखता है) पर रोशनी डाली।मजालिस मे सब से पहले मरसिए खानी की गयी मरसिया पढने वालो मे आसिफ अल्वी, सलीस हैदर काजमी, हमज़ा जैदी सलीम आब्दी, खुवाजा रईस अब्बास आदि थे।

पहली मजलिस मकान सैय्यद निसार हैदर काज़मी मरहूम पर हुई जिसको ईरान क़ुम से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना ज़हूर मेहदी मौलाई साहब ने खिताब फरमाया। दूसरी मजलिस इमामबाड़ा सामानियान मौहल्ला कायस्थान सहारनपुर में हुई जिसको दिल्ली से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना सज्जाद रब्बानी साहब ने खिताब फरमाया।तीसरी मजलिस बडा इमामबाड़ा जाफर नवाज़ में हुई जिसको ईरान क़ुम से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना ज़हूर मेहदी मौलाई साहब ने खिताब फरमाया। चौथी मजलिस छोटा इमामबाड़ा अन्सारियान में हुई जिसको दिल्ली से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना डाक्टर मेहदी बाकिर खान मेराज साहब ने खिताब फरमाया।,मजालिस मे ब्यान किया गया कि जब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का काफला करबला के रास्ते मे ही था तब यज़ीद के गर्वनर इबने ज़ियाद ने अपने सिपेहसालार हुर्र को हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व काफिले को बन्दी बना कर करबला लाने को भेजा हुर्र का लश्कर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को तलाशता हुआ हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के काफिले तक पहुचा तो हुर्र का लश्कर प्यास से बे हाल हो चुका था हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हुर्र के लश्कर की हालत देखते हुए अपने साथियो से कहा कि तुम हुर्र के लश्कर को पानी से सैराब करो और हुर्र के लश्कर को पानी पिलाया गया जो हुर्र के साथ घोडे थे उन्हे भी पानी से सैराब किया गया। हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने लश्कर का सारा पानी हुर्र के लश्कर को पिला दिया पानी पीने के बाद हुर्र ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व उनके लश्कर को बन्दी बनाकर मैदाने करबला ले आया था। उसके बाद जब यज़ीद ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लश्कर का पानी बन्द कर दिया और बच्चे प्यास से तडपने लगे तब हुर्र को शर्मिन्दा होना पडा और अपनी खता मानते हुए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास अपने भाई, बेटे के साथ आया और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अपनी खता को मानते हुए माफी मागी तब हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जनाबे हुर्र को माफ कर दिया उसके बाद हज़रत हुर ने हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की तरफ से यज़ीद के खिलाफ जंग लडी और करबला मे सब से पहले शहीद हुए। मजलिस मे बताया कि हक की बात कहने से कभी डरना नही चाहिए हक बातिल को पिछाडता है हक पर रहने वालो की तादाद कितनी भी कम क्यो न हो बातिल को हमेशा हारना ही पडता है।                        मजालिस के आखिर मे नौहा खानी की गयी जिसमे अन्जुमने अकबरिया व अन्जुमने इमामिया व अन्जुमने सोगवारे अकबरिया ने नौहा खानी व सीनाज़नी की। 

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