हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को कभी भुलना नही चाहिए- मौलाना ज़हूर मेहदी
पहली मजलिस मकान सैय्यद निसार हैदर काज़मी मरहूम पर हुई जिसको ईरान क़ुम से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना ज़हूर मेहदी मौलाई साहब ने खिताब फरमाया। दूसरी मजलिस इमामबाड़ा सामानियान मौहल्ला कायस्थान सहारनपुर में हुई जिसको दिल्ली से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना सज्जाद रब्बानी साहब ने खिताब फरमाया।तीसरी मजलिस बडा इमामबाड़ा जाफर नवाज़ में हुई जिसको ईरान क़ुम से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना ज़हूर मेहदी मौलाई साहब ने खिताब फरमाया। चौथी मजलिस छोटा इमामबाड़ा अन्सारियान में हुई जिसको दिल्ली से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना डाक्टर मेहदी बाकिर खान मेराज साहब ने खिताब फरमाया।,मजलिस वक्फ इमामबाड़ा मारूफ सै0 मुख्तार हुसैन ग्राम सैय्यद मजरा सहारनपुर मे हुई जिसकोे ईरान से तशरीफ लाये, हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना सै0 गज़नफर नकवी साहब ने खिताब फरमाया । मजलिस में सोज़खानी सै0 इकरार हुसैन, सै0 इंतेजार हुसैन, सै0 मुताहर हुसैन ज़ैदी ने की।मजालिस मे धार्मिक विद्धानो ने बताया गया कि यज़ीद हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बैअत (समर्थन) लेना चाहता था। यजीद चाहता था कि रसूल अकरम स0अ0व0स0 का नवासा मेरी बैअत (समर्थन) कर देगा तो मे तमाम मुस्लमानो का खलीफा (सरदार) बनकर मुसलमानो मे वह सारे काम जायज़ कर दूगा जो इस्लाम मे नाजायज़ है और उन बातो पर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मोहर लग जाएगी और तमाम मुसलमान उस पर अमल करने लगेगे और इस तरह इसलाम की शक्ल बदल जाएगी और उसकी हकूमत भी कायम रहेगी यही उसका असली मकसद था यज़ीद की हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस लिए बैअत नही की कि उनको नाना रसूले खुदा स0अ0व0स0 के दीन (धर्म) की हिफाज़त करनी थी और इसके लिए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी कुरबानी 10 मोहर्रम को पेश कर रसूले खुदा स0अ0व0अ0व0स0 के दीन को बचा लिया नही तो इसलाम मे शराब, ज़िनाखोरी (बलात्कार), सूदखोरी, व सारे नाजायज़ काम जायज़ होते इस लिए हमे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को कभी भुलना नही चाहिए। हम अज़ादारी व हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ग़म रस्मो रिवाज की वजह से नही मनाते यह एक तहरीक है। जो मकसदे हुसैनियत को कामयाब बनाने एव करबला के शहीदो को पुरसा देने के लिए करते है। हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का काफला दो मोहर्रम को जब करबला पहुचा तो आपने सब से पहले करबला की ज़मीन को बनी असद से खरीदा और मर्दो से वसीयत की जब हम लोग शहीद हो जाए तो हमारी कब्रगाह यही बनाना और मेरे ज़ायरिन को करबला मे 3 रोज़ तक मेहमान बना कर रखना। फिर वहा की औरतो से वसीयत की थी कि यदि हमे दफन करने मर्द न आ सके तो आप हमे दफन करना। उसके बाद बच्चो से वसीयत की थी कि यदि मर्द या औरते हमे दफन न करने आ सके तो तुम हमे दफन करना।मजालिस के आखिर मे नौहा खानी की गयी जिसमे अन्जुमने अकबरिया व अन्जुमने इमामिया व अन्जुमने सोगवारे अकबरिया ने नौहा खानी व सीनाज़नी की।
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