Ticker

6/recent/ticker-posts

प्रेम और स्नेह को आनंदित जीवन का एकमात्र सूत्र-राजयोगिनी सुदेश दीदी

 प्रेम और स्नेह को आनंदित जीवन का एकमात्र सूत्र-राजयोगिनी सुदेश दीदी

स्वयं का ज्ञान होने से ही होता है परमात्मा का ज्ञान- राजयोगी ब्र.कु.रामनाथ भाई

आत्मा को जान लेने से मिट जाते हैं पूरे सांसारिक मतभेद-आचार्य महामंडलेश्वर संत कमल 

रिपोर्ट-अमान उल्ला खान

सहारनपुर-जिस प्रकार मानव हर रोज अपने वस्त्र बदलता है ठीक उसी प्रकार आत्मा भी अपने वस्त्रों को यानी शरीर को बदलती रहती है। जीवन में यह जानना अति आवश्यक है कि “मैं कौन हूं ?” मैं शरीर हूं या आत्मा।  इसके ज्ञान के बिना परमात्मा को नहीं पाया जा सकता। यह सब केवल राजयोग से संभव है।इसी से जीवन में खुशी और आनन्द भर जाता है। उपरोक्त ओजस्वी विचार ब्रह्मा कुमार राज योगी रामनाथ भाई ने ब्रह्मा कुमारीज के धार्मिक प्रभाग द्वारा माउंट आबू में आयोजित पाँच  दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन पर व्यक्त किए। उन्होंने बताया की आत्मा का स्वरूप एक ज्योति बिंदु स्वरूप है और सभी आत्माओं के पिता स्वयं एक ज्योति है जिन्हें भगवान शिव कहा जाता है। इसीलिए पूरे भारतवर्ष में ज्योतिर्लिंग पाए जाते हैं। 

धार्मिक संत सम्मेलन का शुभारंभ दिव्य शक्ति अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर संत कमल किशोर, राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी सुदेश दीदी,राजयोगिनी ब्र.कु.मनोरमा दीदी,राजयोगी ब्र.कु.नारायण भाई, ब्र.कु बृजमोहन भाई, महामंडलेश्वर सुरेन्द्र शर्मा,महामंडलेश्वर जगदीश वेदी, महामंडलेश्वर प्रफुल्ल रंजन हलदर,महामंडलेश्वर निर्मला सोनी, महामंडलेश्वर रेखा बांका,अखाड़ा राष्ट्रीय संयोजक सुरेश निझावन, अखाड़ा संयोजक सन्त श्री चन्दर पाराशर,सुखविंदर सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया।आचार्य महामंडलेश्वर संत कमल किशोर ने आनंदमयी जीवन की व्याख्या करते हुए कहा कि जब तक संसार में तेरा-मेरा,ऊंच-नीच,जाति-पाति,धर्म-भाषा और सीमाओं के लिए लड़ाईयाँ होती रहेंगी तब तक विश्व शान्ति नहीं हो सकती। आत्मा को जान लेने से पूरे सांसारिक मतभेद मिट जाते हैं और चारों ओर प्रेम की सुगंध फैलने लगती है।ब्रह्माकुमारी की संयुक्त मुख्य प्रशासिका बी के सुदेश दीदी ने प्रेम और स्नेह को आनंदित जीवन का एकमात्र सूत्र बताते हुए कहा कि शिव बाबा ने स्वयं आकर पारब्रहम का ज्ञान दिया है। इस समय कलयुग और सतयुग का सन्धिकाल चल रहा है। मानव जीवन को चारों ओर से काम, क्रोध, लोभ।मोह,अहंकार, युद्ध,बाढ़,भूकम्प, अग्निकांड जैसी वीभत्स विभीषिकाओं ने घेरा हुआ है अतः इस समय सभी आत्माओं को विषय विकारों को छोड़ कर सरलता,समत्व,आहार की शुद्धि,स्मृति,और अभ्यास से राजयोग करना चाहिए। राजयोगिनी ब्र.कु.मनोरमा दीदी ने पवित्रता के साथ दृष्टि को जोड़ते हुए कहा कि दृष्टि में अटकाव और भटकाव नहीं होना चाहिए। दृष्टि में यदि अटकाव और भटकाव नहीं है तो ही हम अर्जुन की तरह मछली की आँख के लक्ष्य को भेद सकते हैं। यही पवित्रता हमारी धारणाओं का आधार बन कर हमें सत्यम शिवम सुंदरम की अनुभूति करवाता है।   कार्यक्रम मे सभी संतों को पुष्पगुच्छ,तिलक और शाल ओढा कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम मे बी के विष्णु जी ने अनवरत छायांकन कर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।पानीपत से पधारी बी के ज्योति दीदी ने सभी संतों को एक माला में पिरोने का काम बखूबी किया। कार्यक्रम पश्चात सभी आत्माओं को वरदान कार्ड के साथ भोग वितरित किया गया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

आयुष्मान योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना-विधायक देवेंद्र निम