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कावड़ स्पेशल ----अटूट आस्था,श्रद्धा और विश्वास की साक्षी है शिव भक्तो की कावड़ यात्रा

अटूट आस्था,श्रद्धा और विश्वास की साक्षी है शिव भक्तो की कावड़ यात्रा

पौराणिक महत्व,के साथ इतिहास और मान्यताओं से जुड़ी है कांवड यात्रा

शुक्रवार 2 अगस्त को होगा त्रयोदशी का जलभिषेक, कावडियो के होंगे व्रत और  मनोरथ पूर्ण

कावड़ स्पेशल रिपोर्ट-अमित यादव मोनू

सहारनपुर-हमारे देश मे सभी व्रत और त्यौहारों का अपना अलग महत्व है। ऐसे ही अनुष्ठानों मे से एक है सावन महीने मे निकाले जाने वाली कांवड यात्रा है। भगवान शिव के भक्तो द्वारा मनाये जाने वाला एक पवित्र अनुष्ठान है।यह पूरे देश मे सावन माह मे मनाया जाने वाला एक वार्षिक उत्सव है कावड यात्रा भगवान भोलेनाथ के भक्त सावन माह के दौरान गंगा के पवित्र जल से त्रयोदशी के दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। इस बार त्रयोदशी यानि जल दो अगस्त दिन शुक्रवार का है 

कांवड़ यात्रा की मान्यता

प्राचीन मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित 'पुरा महादेव' का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। लाखों भक्त गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर जाते हैं और पुरा महादेव पर जल अर्पित करते हैं। तभी से यह कांवड़ यात्रा संतो द्वारा की जा रही और 1960 मे यह यात्रा प्रकाश मे आई और तब से आमजन भी कांवड यात्रा करने लगा। कांवड़ यात्रा में पुरुष भी नहीं बल्कि महिला और बच्चे भी भाग लेते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर एक और मान्यता यह है कि इस यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में श्रवण कुमार द्वारा की गई थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूर्ति के लिए श्रवण कुमार ने कांवड़ लाया था और इसी कांवड़ में श्रवण ने अपने माता-पिता को बैठा कर उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया। श्रवण लौटते वक्त गंगाजल को वह अपने साथ भी ले आए थे और इसी जल से उन्होंने भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था।

कांवड़ यात्रा का महत्व

कांवड़ यात्रा एक पवित्र और कठिन यात्रा है जो पूरे भारत के भक्त विशेष रूप से उत्तर भारत के प्रमुख राज्ये जैसे दिल्ली हरियाणा,पंजाब,राजस्थान,उत्तरप्रदेश आदि के लोग विभिन्न पवित्र स्थानो जैसे गौमुख, गंगोत्री,ऋषिकेश और हरिद्वार आदि जगहो से कांवड़ मे गंगा जल भरकर कंधों पर रख पैदल यात्रा कर त्रयोदशी तिथि पर अपने गृह नगरो के शिव मंदिरों जलभिषेक करते है। ऐसा माना जाता है कि सावन महादेव को अति प्रिय है जिस कारण कावड लाने वाले भक्तों की मनोकामनाएं भगवान शीध्र ही पूरी करते हैं।

कांवड किसे कहते है

कांवड बांस से बना एक छोटा सा लकडी का लचकदार डंडा होता है जिसके विपरीत छोर पर घड़े बंधे होते हैं। भक्त उन घड़े मे  गंगाजल भर कर पैदल अपनी गृह नगरी मे लेकर आते है और जलभिषेक करते सावन मे महीने के दौरान शुभ यात्रा करने वाले भक्तो को कांवडिया कहा जाता है।

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