आचार्य कुलदीप ने बताया श्री शिवमहापुराण का महत्त्व
उन्होंने कहा कि श्री शिवमहापुराण एक ऐसा ग्रन्थ है जो पापी नही अपितु महापापी को भी भव से तारता है। श्री शिवमहापुराण के महात्म मे कथा आती है। देवराज नाम के ब्राह्मण की वह नाम से ब्राह्मण था पर मति पाप रत रहती थी, वैश्यागामी हो गया। पूरा जीवन पाप कर्म मे ही बिता दिया और जब अन्त आया तो किसी शिवालय में श्री शिवमहापुराण सुनते सुनते प्राणान्त हो गये तो शिवगण उसे लेने आये। इतना बडा महत्व है। श्रीशिवमहापुराण को सुनने का कितना भी बडा से बडा पापी हो, अगर शिवपुराण को सुन लिया या अन्त समय मे शिव शिव भज लिया। भैय्या फिर शिवलोक के सीधे द्वार खुल जाते है और साथ ही धर्म और अधर्म के बारे मे बताया कि अगर कोई मनुष्य अपने सामने कीई अधर्म होते देखता है तो उससे बडा पापी कोई नही होता। भरी सभा मे द्रौपदी की लाज जा रही थी और भीष्म पितामह शान्त बैठे थे तो उन्हे बाणो की शैय्या पर रहना पडा और एक जटायू था जो सीता हरण के समय सीता जी की रक्षा करते करते प्राण त्याग दिये तो स्वयं भगवान राम ने उनका अन्तिम सस्कार किया। यानी जो व्यक्ति अपने सामने किसी नारी पर अधर्म होते देखता है, वो सबसे बडा महापापी होता है। उसे उस पाप का फल अवश्य भोगना पडता है। कथा से पूर्व आचार्य राहुल कृष्णन द्वारा गणेशादि की पूजा कराई गई। जिसमे यजमान योगेश कुमार अंजेश सैनी नकुड प्रवेश सैनी, ईन्द्रा देवी, सरोज जयवती, नवीन चौधरी आदि मौजूद रहे
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