Ticker

6/recent/ticker-posts

कवि डॉ.संजीव कौशल के काव्य संग्रह ‘घर ख्वाबों से बनता है’ का हुआ लोकार्पण

 रामतीर्थ केंद्र में हुआ गंगा-यमुनी कवि सम्मेलन का आयोजन

कवि डॉ.संजीव कौशल के काव्य संग्रह ‘घर ख्वाबों से बनता है’ का हुआ लोकार्पण 

रिपोर्ट-अमान उल्ला खान

सहारनपुर-मलयालम के अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्याकार डॉ.संतोष अलेक्स के सम्मान में यहां अंबाला रोड पर एक गंगा-यमुनी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दिल्ली के ख्याति प्राप्त कवि डॉ.संजीव कौशल के काव्य संग्रह ‘घर ख्वाबों से बनता है’ का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता रोहतक से आयी शिक्षाविद् एवं कवि शबनम राठी ने की।

डॉ. संजीव कौशल ने कहा कि कविताएं हमारी उम्मीदों को बचाये रखने की कोशिश है। उन्होंने संग्रह से अपनी कविता ‘मातृभाषा’ व ‘अशोक के शेर’ का काव्य पाठ भी किया। स्ांजीव कौशल की रचना धर्मिता पर चर्चा करते हुए दिल्ली के कवि एव साहित्यकार जसबीर त्यागी ने कहा कि संजी कौशल प्रतिबद्ध कवि हैं। प्रतिबद्धता दूसरों को भी सम्मान देती है। संजीव गंगा-यमुनी संस्कृति को सहेजने वाले कवियों की श्रेणी में आते हैं। उन्होंने संस्कारों को बचाने का संदेश देती कविता पढ़ी-‘स्वीकार बचा रहे, आभार बचा रहे, प्यार बचा रहे/किसी के दुःख में, खुश न होऊं/किसी की खुशी में दुःखी न होऊं/बस! इतना संस्कार बचा रहे।’ जबकि मुख्य अतिथि संतोष अलेक्स की कविता-‘‘गांव से शहर पहुंचने पर मिट्टी बदल जाती है.....।’’ ने खूब तालियां बटोरी।

शबनम राठी की कविता को भी खूब सराहा गया-‘क्यों पनपने दिया दरिया मैंने/और रोती रही चुपके चुपके/तमाम रात की स्याही से/तेरी तस्वीर बनाई छुप के।’ शहर के लोक गीतकार नरेंद्र मस्ताना के गीत को खूब दाद मिली। उनका गीत देखिये-‘‘गुड़-गुड़ हुक्का बोल्ले दिन भर म्हारे जेठ का/चौकीदारा करता दिखै,घर के गेट का।’’ डॉ.आर पी सारस्वत के गीत-‘‘सड़क तुम अब आयी हो गांव/गांव छोड़कर शहर जा चुका जब सारा ही गांव।’’ को खूब सराहा गया। डॉ. विजेंद्र पाल शर्मा ने जमकर तालियां बटोरी -‘‘हां!खुशी बांटने का हुनर, सच कहूं सीख लें हम अगर/मुक्त मन-प्राण हो जायेंगे, गुनगुनाने लगेंगे अधर।‘‘ हरिराम पथिक के दोहे को भरपूर सराहना मिली-‘‘ मां गीता के ज्ञान सी मां मुरली घनश्याम/मां केवल अक्षर नहीं, मां है अक्षर धाम।’’शब्बीर शाद के इस कलाम को भी खूब सराहा गया-‘‘रात का मंजर बदलना चाहिए, चांद बदली से निकलना चाहिए/ जिसको समझे सब उजालों का सफ़ीर, इक दिया ऐसा भी जलना चाहिए।’’डॉ. एस के उपाध्याय ने पढ़ा-‘’जीवनभर खिलता रहा नागफनी का फूल/जब सब कुछ प्रतिकूल था जेठ, दुपहरी, धूल।’’ वीरेश त्यागी के गीत को भी खूब वाहवाही मिली।उनके गीत की बानगी देखिए-‘‘कोई वनिता जब धरणी के सम धीरज धर लेती है/तो पूरा विस्तार गगन का आंचल में भर लेती है।’’ इसके अलावा डॉ.वीरेन्द्र आज़म व राजीव उपाध्याय ने भी काव्य पाठ किया। संचालन डॉ. वीरेन्द्र आज़म ने किया। गोष्ठी में बड़ी संख्या में हिंदी प्रेमी मौजूद रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

 वरिष्ठ सपा नेता मोनिस रज़ा ने  सपा सुप्रीमो को दी दीपावली की बधाई