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होलाष्टक प्रारंभ,आठ दिन शुभ और मांगलिक रहेंगे निषेध

होलाष्टक प्रारंभ,आठ दिन शुभ और मांगलिक रहेंगे निषेध

होलाष्टक के साथ होली उत्सव और होलिका दहन की तैयारिया आरम्भ

रिर्पोट-अमित मोनू यादव

सहारनपुर-होली सनातन धर्म के मुख्य त्यौहारो में से एक है,रंगो के इस महापर्व को ऋतु परिर्वतन के लिहाज से भी जाना जाता है। प्राचीन सनातन मान्यता है कि होली के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगाज हो जाता है।

वही होली के त्यौहार से ठीक आठ दिन पहले होलाष्टक प्रारंभ हो जाता है जिसमे सनातन संस्कृति में आस्था रखने वाले लोगो के लिए शुभ और मांगलिक निषेध रहते है।होलाष्टक फाल्गुन मास में आता है। दो शब्दो के मेल से बना होलाष्टक,होली और अष्टक यानि 8 दिनों का पर्व होता है। होली उत्सव से पहले के आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि होली के उत्सव के आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से ही प्राप्त होती है। होलाष्टक में होली उत्सव के साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।

इस वर्ष होलाष्टक की तिथि

होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 17 मार्च 2024 से शुरू होंगे और फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च 2024 पर समाप्त होंगे। इस दिन होलिका दहन होगा और 25 मार्च 2024 को रंगवाली होली खेली जाएगी।

सनातन धर्म में होलाष्टक का महत्व

होली से आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है और इन आठ दिनों  में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि होलाष्टक के दिनों को अशुभ माना जाता है,तथा दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह,सगाई, गृह प्रवेश, नए घर की खरीदारी, वाहन की खरीदारी, भूमि पूजन, नया व्यवसाय की आदि की शुरुआत आदि शुभ कार्य नहीं किये जाते है।होलाष्टक से सम्बंधित दो प्रसिद्ध पौराणिक कथाए में भी वर्णन है कि होलाष्टक में शुभ और मांगलिक कार्य क्यो नहीं किये जाते है।

 क्या कहती है पौराणिक कामदेव की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार इन्द्रदेव के कहने पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी और इससे नाराज होकर भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र से प्रेम के देवता कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने 8 दिनों तक शिव की आराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया। इसी परंपरा के कारण यह 8 दिन शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।

भक्त प्रहलाद की कथा का होलष्टक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करने के लिए इन आठ दिनों में कठिन यातनाएं दी थीं। आठवें दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह आग से नहीं जल सकती है। परन्तु जब होलिका, भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी और जल गई थी। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद आग से बच गए थे। इसलिए इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते।होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं, जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है।

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